प्रियता प्राप्त करने का रहस्य

““मुझे प्रणाम तो सहस्त्र योगीजन प्रतिक्षण कर ही रहे हैं, उसमें यदि तुमने भी एक प्रणाम अर्पित कर दिया तो मुझे कोई अंतर नहीं पड़ने वाला, किन्तु यदि तुमने अपने हृदय का मूक प्रेम मुझे अर्पित कर दिया तो वह मेरे जीवन की पूंजी होगी.!” यह मूक प्रेम केवल “सिंह” बनकर ही संभव हो सकता हैं, मेमनों की तरह मिमियाने-घिघियाने से कदापि नहीं.... दुर्बलता और दैन्य से गुरु नहीं मिलते, स्वयं को पापी-पतित मानने से भी गुरु नहीं मिलते, वरन जो यह सब कुछ एक झपट्टे में साफ़ कर देता हैं, उसे मिलते हैं. सिंह अपने आखेट के लिए योजनाये नहीं बनाते, मचान नहीं बांधते, दूरबीनो से गणना नहीं करते, अपितु निश्चय करके उठाते हैं और अपना इच्छित प्राप्त कर ही लेते हैं! यही मेरी प्रियता प्राप्त करने का रहस्य एवं अवसर भी हैं, क्योंकि बाद में तो केवल अनुमान ही शेष रह जायेंगे. जीवन की अनेक बातें अनुमानों से नहीं किसी दिव्य विभूति के चरणों में बैठकर ही समझी जा सकती हैं!” 


 -सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमालीजी.