शंकराचार्य ने पुरे भारतवर्ष में घूमकर एक ही बात कही कि संसार का सब कुछ मंत्रों के आधीन हैं! बिना मंत्रों के जीवन गतिशील नहीं हो सकता, बिना मंत्रों के जीवन की उन्नति नहीं हो सकती, बिना साधना के सफलता नहीं प्राप्त हो सकती!
गुरु तो वह हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति को एक मंदिर बना दे, मंत्रों के माध्यम से! वैष्णो देवी जायें और देवी के दर्शन करे, उससे भी श्रेष्ठ हैं कि मंत्रों के द्वारा वैष्णो देवी का भीतर स्थापन हो, अन्दर चेतना पैदा हो जिससे वह स्वयं एक चलता फिरता मंदिर बनें, जहाँ भी वह जायें ज्ञान दे सकें, चेतना व्याप्त कर सकें तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान को सुरक्षित रख सकें!
जब मैं इंग्लैण्ड गया तो वहां भी लाख-डेढ़ लाख व्यक्ति इकट्ठे हुए, उन्होंने भी स्वीकार किया कि मंत्रों का ज्ञान प्राप्त होना चाहिए! उन्होंने कीर्तन किया, मगर कीर्तन के बाद मंत्रो को सीखने का प्रयास भी किया, निरंतर जप किया और उनकी आत्मा को शुद्धता, पवित्रता का भाव हुआ! मैक्स म्युलर जैसे विद्वान ने भी कहा हैं कि वैदिक मंत्रों से बड़ा ज्ञान संसार में हैं ही नहीं ! उसने कहा हैं कि मैं विद्वान हु और पूरा यूरोप मुझे मानता हैं, मगर वैदिक ज्ञान, वैदिक मंत्रों के आगे हमारा सारा ज्ञान अपने आप में तुच्छ हैं, बौना हैं ! आईंस्टीन जैसे वैज्ञानिक ने भी कहा कि एक ब्रह्मा हैं, एक नियंता हैं, वह मुझे वापस भारत में पैदा करें, ऐसी जगह पैदा करें, जहाँ किसी योगी, ऋषि या वेद मंत्रों के जानकार के संपर्क में आ सकूँ, उनसे मंत्रों को सीख सकूँ! अपने आप में सक्षमता प्राप्त करूँ और संसार के दुसरे देशों मे भी इस ज्ञान को फैलाऊँ!
गुरु वह हैं जो आपकी समस्याओं को समझे, आपकी तकलीफों को दूर करने के लिए उस मंत्र को समझाएं, जिसके माध्यम से तकलीफ दूर हो सकें! मंत्र जप के माध्यम से दैवी सहायता को प्राप्त कर जीवन में पूर्णता संभव हैं! दैवी सहायता के लिए जरुरी हैं कि आप देवताओं से परिचित हो और देवता आपसे परिचित हो!
परन्तु देवता आपसे परिचित हैं नहीं! इसलिए जो भगवान् शिव का मंत्र हैं, जो सरस्वती का मंत्र हैं, जो लक्ष्मी का मंत्र हैं, उसका नित्य जप करें और पूर्णता के साथ करें, तो निश्चय ही आपके और उनके बीच की दुरी कम होगी! जब दुरी कम होगी तो उनसे वह चीज प्राप्त हो सकेगी! एक करोडपति से हम सौ-हजार रुपये प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु लक्ष्मी अपने आपमें करोडपति ही नहीं हैं, असंख्य धन का भण्डार हैं उसके पास, उससे हम धन प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु तभी जब आपके और उनके बीच की दुरी कम हो…. और वह दुरी मंत्र जप से कम हो सकती हैं! मंत्र का तात्पर्य हैं – उन शब्दों का चयन जिन्हें देवता ही समझ सकते हैं! मैं अभी आपको ईरान की भाषा में या चीन की भाषा में आधे घंटे भी बताऊं, तो आप नहीं समझ सकेंगे! दस साल भी भक्ति करेंगे, तो उसके बीस साल बाद भी समस्याएं सुलझ नहीं पाएंगी, क्योंकि उसका रास्ता भक्ति नहीं हैं उसका रास्ता साधना हैं, मंत्र हैं!
जो कुछ बोले और बोल करके इच्छानुकूल प्राप्त कर सकें वह मंत्र हैं!
-पूज्यपाद सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी.
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान
जनवरी 2000, पेज नं : 21.